kashibanaras

काशी में मंदिरो एवं घाटो की संख्या अधिक है काशी के मुख्य मंदिरों में काशी विश्वनाथ, काशी के कोतवाल कहे जाने वाले बाबा काल भैरव,संकटमोचन एवं दुर्गा मंदिर प्रमुख है तथा घाटों में दशाश्वमेध घाट ,अस्सी घाट मणिकर्णिका ,हरिश्चंद्र घाट प्रमुख है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहाँ के घाट एवं मन्दिर मनुष्य को पाप से मुक्ति एवं मोक्ष की प्राप्ति कराने में सहायक होते है

आर्यावर्त में उपस्थित बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक देवों के देव महादेव का प्रतीक काशी में विराजमान काशी विश्वनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है इस धर्म स्थल की सबसे बड़ी विषेता मोक्ष की प्राप्ति है।इस मंदिर में प्राचीन संत रामकृष्ण परमहंस, तुलसीदास, स्‍वामी विवेकानंद के आगमन होने के कारण इस मंदिर का महत्व और भी अधिक हो जाता है हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार सबसे प्राचीन नगरी हमारी काशी है काशी का उल्लेख हमारे सबसे प्राचीन धर्म ग्रन्थ ऋग्वेद में भी किया गया है काशी नगर की दार्शनिक यात्रा तब तक फलित नहीं होती जब तक आप कालो के काल महादेव एवं बाबा काल भैरव के मंदिर का दर्शन नहीं कर लेते |

काशी विश्वनाथ मंदिर :-

सनातन धर्म के सबसे पवित्र स्थल में से एक बाबा भोले नाथ की नगरी काशी है काशी में कालो के काल महाकाल का वास है यहाँ पे महादेव को काशी विश्वनाथ के नाम से जाना जाता है काशी विश्वनाथ मंदिर महादेव का प्रतीक है इस मंदिर में हर हर महादेव की गूंज जोर शोर से सुनाई देती है काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मंदिर के सवरूप का निर्माण सर्वप्रथम 1780 ईस्वी में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होलकर के योगदान से पूर्ण किया गया एवं तब पश्चात महाराजा रणजीत सिंह ने सोने से मंदिर के छत्र के निर्माण में योगदान दिया तथा काशी कारीडोर का निर्माण भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने करवाया।

इस प्रसिद्ध मंदिर की सबसे बड़ी विषेशता यह है की यह माँ गंगा नदी के तट पर बसा दशाश्वमेध घाट के पास में स्थित है।

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय विश्वनाथ मंदिर :-

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के परिसर में शिव मंदिर का निर्माण किया गया है जिसे विश्वनाथ मंदिर के नाम से जानते है तथा इसे ‘नया विश्वनाथ मंदिर’ ‘ भी कहते है। इस मन्दिर के शिखर को देखने से ऊँचा प्रतीत होता है. इस मंदिर में शिवरात्री एवं सोमवार को बाकी दिनों से अधिक भीड़ लगी रहती है । यह पूर्वांचल के सबसे बड़े विश्वविदयालय वाराणसी में बनारस हिन्दू विश्वविदयालय विश्वनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है जहा पे सम्पूर्ण उत्तरप्रदेश एवं नजदीकीय राज्य से भी छात्रों का आगमन होता है इस विश्वविद्यालय का निर्माण श्री मदनमोहन मालवी जी के योगदान से सम्भव हुवा है

बाबा कालभैरव :-

काल भैरव मन्दिर वाराणसी के उत्तर में स्थित है। प्राचीन मान्यताओ के अनुसार बाबा काल भैरव को काशी का कोतवाल कहाँ जाता है काशी विश्वनाथ के दर्शन तब तक फलित नहीं होते जब तक आप बाबा काल भैरव का आशीर्वाद नहीं प्राप्त करते है यहाँ के नगर वासी वो में एक डर भी बना रहता है की कही कुछ गलत किया तो बाबा के प्रकोप का सामना करना पड़ेगा इस मंदिर में प्रतिदिन भीड़ तो लगी रहती है पर सबसे अधिक भीड़ रविवार को होती है. कुछ लोगो का कहना है की इस मंदिर में रविवार को झड़वाने से भूत-पिशाच से बधित लोगो की मानसिक स्थिति अच्छी होती है इस मंदिर में बाबा कालभैरव को शराब का भी अर्पण किया जाता है मुख्यतः भक्त सरसो का तेल और लाचिदाना एवं फूल,काले धागे चढ़ाते है काले धागे को हाथ और गर्दन में बांधने से बुरी नजर एवं गलत शक्तिओ से बचाओ होती है।

संकट मोचन मंदिर :-

संकट मोचन प्राचीन मंदिरो में से एक है। यह मंदिर राम भक्त गोस्वामी तुलसीदास के अटूट भक्ति को दर्शाता है राम के प्रति अटूट प्रेम होने के कारण भगवान राम के दूत भगवान हनुमान जी ने गोस्वामी तुलसीदास को दर्शन दिए थे, इस मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा मिट्टी की है जिसे कहा जाता है भगवान हनुमान खुद ही मिट्टी के स्वरूप में राम भक्तो के लिए यहीं स्थापित हो गए। इस मंदिर का नाम संकट मोचन गोस्वामी तुलसीदास के हाथ के पीड़ा को दूर करने पर पड़ा आज भी दूर दूर से भक्त अपनी परेशानिओ से मुक्त होने के लिए आते है और मुक्त हो कर जाते भी है. इस संकट मोचन मंदिर के परिषर में उपलब्ध शुद्ध लाल पेड़ा ,घी से बने बेसन के लड्डू और तुलसी की माला अर्पित की जाती हैं ।

विशालाक्षी जी का मंदिर :-

५६ छपन्न शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है विशालाक्षी शक्ति पीठ जो की काशी में स्थित है। यहां पर माँ भगवती की रूप अर्थात माता सती जी की दाहिने कान के कुंडल गिरी थी उस स्थान को मणिकर्णिका कुंड कहाँ जाता है इस कुण्ड के समीप माता विशालाक्षी जी का मंदिर है और इस मंदिर के पास में मणिकर्णिका घाट भी उपस्थित है |

दुर्गा मंदिर-

दुर्गा जी का मंदिर वाराणसी में दुर्गाकुण्ड के नाम से भी जाना जाता है दुर्गाकुण्ड में मां दुर्गा का भव्य एवं विशाल मंदिर है कथा अनुसार यह पता चलता है की दैत्य शुंभ एवं निशुंभ का वध करने के पश्चात जिस स्थान पर मां दुर्गा ने विश्राम किया उस जगह को दुर्गा मंदिर एवं दुर्गा कुण्ड के नाम से जानते है.इस मंदिर में एक कुण्ड भी है जिसके पीछे रोचक कथाएँ प्रचलित है कथा अनुसार इस कुण्ड में माँ दुर्गा ने अपने भक्त राजकुमार सुदर्शन के सभी विरोधियों को इस स्थान पर मार गिराया जिसके कारण ये स्थान लाल रक्त से भर गया इस स्थान पर कुण्ड की इस्थापना हुआ है कहाँ जाता है की जो इस कुण्ड के जल को बिना दूषित कीये अर्थात सादे जल की  डुबकी लगाता है उसे पाप मुक्त होने का आशीर्वाद माँ भगवती देती है

मां अन्‍नपूर्णा मंदिर :–

जहाँ देवाधिदेव महादेव विराज मान होते है वहाँ माँ सती किसी ना किसी रुप में अवश्य ही विराजती है काशी में मां अन्‍नपूर्णा के रूप में विराज मान है माता के आशीर्वाद से सभी काशी में रहने वाले लोगो को कभी भूखे पेट नहीं सोना पड़ता और माता अन्नपूर्णा के मंदिर में प्रसाद के रुप में चावल के दाने और पके भोजन भी करवाए जाते है जिसमे चावल ,सांभर ,आलू भुजिया सीजनली सब्जी ,पापड़ ,मिठाई ,दही ,चीनी भी भक्तो में निः शुल्क प्रसाद अर्पित कराये जाते है जो भक्त समर्थवान होते है वो इस मंदिर में योगदान भी देते है जिसके कारण यहाँ की जनता भूखे पेट नहीं सोती और माँ का आशीर्वाद सदैव बना रहता है। मां अन्‍नपूर्णा की मुख्य प्रतिमा स्‍वर्ण से बनी है जिसे प्रत्येक वर्ष के धनतेरस से दिवाली के दूसरे दिन तक ही देख कर आशीर्वाद लेने वाले भक्तो की भीड़ लगी रहती है. मां अन्‍नपूर्णा के मुख्य प्रतिमा का बाकी दिन कपाट बंद रहता है ।

तुलसी मानस मंदिर :-

इस मंदिर के नाम से ही प्रतीत होता है की यह भगवान राम के भक्त तुलसी दास जी का मंदिर है कहाँ जाता है की संत तुलसी दास जी ने इस स्थान पर बैठ कर रामचरितमानस की रचना की थी. वाराणसी कैन्ट से लगभग चार से पाँच किलोमीटर की दुरी पर स्थित है जिसका निर्मांण सेठ रतन लाल सुरेका जी दवारा संगमरमर के पथरो से करवाया गया है. तथा इस मंदिर का उद्घाटन भारत के राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा 1964 ईश्वी में किया था ।

नेपाली कंठवाला मंदिर :–

नेपाल के राजा द्वारा 19वीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर को श्री समराजेश्वर पशुपतिनाथ महादेव मंदिर, जिसे नेपाली मंदिर एवं कंठवाला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है कंठवाला का अर्थ लकड़ी होता है। इस मंदिर को अधिकतर लकड़ी एवं पत्थर से निर्मित किया गया है, पवित्र शहर वाराणसी के समीप काशी के ललिता घाट के पास यह प्रसिद्ध मंदिर उपस्थित है। इस मंदिर में भगवान शिव की प्रतिमा की पूजा अर्चना की जाती है यह मंदिर कालो के काल महाकाल को समर्पित है ।

मणि मंदिर :-

यह मणि मंदिर वाराणसी के दुर्गाकुंड में स्थित है इस मंदिर को करपातत्री महाराज की तपोस्थली के धर्मसंघ परिसर में बनवाया गया है मणि मंदिर का निर्माण भव्य रूप में किया गया है मणि मंदिर में भगवान श्री राम के साथ महादेव एवं माता सती तथा पंचदेव अर्थात गणेश, शिव, विष्णु, सूर्य, शक्ति विराजमान है |

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